2020: क्या खोया क्या पाया
जब हम पलटकर साल 2020 पर एक बार फिर नज़र डालते हैं तो पाते हैं कि ये वो साल रहा है जिसे भुला पाना नामुमकिन है… कोरानावायरस के संक्रमण के फैलाव को रोकने के लिए लगभग हर देश ने लॉकडाउन लगा दिया… यातायात ठप, कारखाने ठप, हर किस्म की आवाजाही बंद कर दी गई… सब रुका तो बढ़ते प्रदूषण की रफ्तार भी रूक गई… कई इलाकों में हवा इतनी साफ और स्वच्छ हो गई कि देश के कई हिस्सों से हिमालय पर्वत श्रृंखला के भी दर्शन होने लगे…
साल 2020 में पहाड़ी इलाकों से भी लैंडस्लाइड की खबरें कम सुनने को मिली… ऐसा क्यों हुआ… पहाड़ों पर आवाजाही कम होने से हलचल कम हुई… हलचल कम हुई तो भूस्खलन भी कम हुए…
हर बार लाखों-करोड़ों रूपये नदियों को साफ करने पर खर्च कर दिए जाते हैं… या यूं कहें तो पानी की तरह पैसा बहा दिया जाता है… लेकिन नतीजा क्या होता है… नदियां साफ होने के बजाए और प्रदूषित होती जाती है… कोरोनावायरस के दौर में यूरोप, अमेरिका से लेकर भारत तक में ज़्यादातर कारखाने बंद रहे… जिससे औद्योगिक कचरा नदियों तक नहीं पहुंच सका… हमारे देश की नदियों का जल स्वच्छ नज़र आने लगा… गंगा में गैंगेटिक डॉल्फिन दिखने लगी… 2020 ने हमें इस तथ्य से रूबरू कराया कि हमारे उद्योग देश के विकास की धुरी हैं… उद्योगों को तो बंद नहीं किया जा सकता… लेकिन औद्योगिक कचरे का सही तरीके से निपटारा जरूर किया जा सकता है… ताकि विकास तो हो ही साथ साथ पर्यावरण की भी रक्षा की जा सके…
कोरनावायरस के दौर में Work from Home एक ज़रूरत बन गया… शुरूआत में तो ज़्यादातर कंपनियों ने Employees को घर से ही काम करने की आजादी दी.. लेकिन धीरे-धीरे ऑफिस जाकर काम को रफ्तार देने का ट्रेंड अब फिर से वापस आ रहा है… ऑफिस जाकर काम करने ये ट्रेंड वैक्सीन लगने के बाद और बढ़ेगा… उम्मीद है कि कोविड19 का टीका लगने के बाद लोग फिर से दफ्तर लौटेंगे और ज़िंदगी की गाड़ी पटरी भी लौटेगी…एक बात पर कोरोनावायरस संक्रमण ने लगभग सभी को सोचने पर विवश किया…कि असल में हमारी ज़िंदगी में कौन सी चीज ज़्यादा महत्वपूर्ण है… एक सोच जो सबके जेहन में लॉकडाउन के वक्त थी और आज भी है कि जीवन जीने के लिए क्या वाकई में इतनी चीजों की ज़रूरत है जितनी कि हम अपने घरों में इक्टठ्ठा कर लेते हैं... लोग खुद से सवाल करने लगे कि क्या घर के अंदर बेवजह सामान इक्ठ्ठा करना उचित है… असल में कम समय के लिए ही सही लोग जीवन के सही मूल्यों के बारे में सोचने को मजबूर हुए… इस बात में भी दो राय नहीं है कि जीवन का मूल्य अपनों के साथ समय बिताने और अपने अंतर्मन में झांकना ही है…हम सभी जानते हैं कि कोरोनावायरस से डर पूर्णकालिक नहीं है… वैक्सीन लगाने के बाद लोगों का डर काफी हद तक कम होगा… सवाल है कि कोरोनावायरस के इस दौर से जो सीख मिली है क्या वो आंशिक रहेगी… या हम अपनी ज़िंदगी को सही मायने में बेहतर बनाने की सार्थक पहल करेंगे….
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