2020: क्या खोया क्या पाया

 

जब हम पलटकर साल 2020 पर एक बार फिर नज़र डालते हैं तो पाते हैं कि ये वो साल रहा है जिसे भुला पाना नामुमकिन हैकोरानावायरस के संक्रमण के फैलाव को रोकने के लिए लगभग हर देश ने लॉकडाउन लगा दियायातायात ठप, कारखाने ठप, हर किस्म की आवाजाही बंद कर दी गईसब रुका तो बढ़ते प्रदूषण की रफ्तार भी रूक गईकई इलाकों में हवा इतनी साफ और स्वच्छ हो गई कि देश के कई हिस्सों से हिमालय पर्वत श्रृंखला के भी दर्शन होने लगे

शहरों में प्रदूषण ज़्यादा होता है और इसकी सबसे ज़्यादा मार दिल्ली जैसे महानगर के निवासी झेलते हैंप्रदूषण कम हुआ तो साफ आसमान में रात में तारे नज़र आने लगेये दुर्लभ नज़ारा कई लोगों के चेहरों पर मुस्कान लेकर आयासाल 2020 ने हमें बताया कि अगर हमें अपने वातावरण को स्वच्छ रखना है तो क्या करना होगा और क्या नहीं करना होगा

साल 2020 में पहाड़ी इलाकों से भी लैंडस्लाइड की खबरें कम सुनने को मिलीऐसा क्यों हुआपहाड़ों पर आवाजाही कम होने से हलचल कम हुईहलचल कम हुई तो भूस्खलन भी कम हुए

हर बार लाखों-करोड़ों रूपये नदियों को साफ करने पर खर्च कर दिए जाते हैंया यूं कहें तो पानी की तरह पैसा बहा दिया जाता हैलेकिन नतीजा क्या होता हैनदियां साफ होने के बजाए और प्रदूषित होती जाती है… कोरोनावायरस के दौर में यूरोप, अमेरिका से लेकर भारत तक में ज़्यादातर कारखाने बंद रहेजिससे औद्योगिक कचरा नदियों तक नहीं पहुंच सकाहमारे देश की नदियों का जल स्वच्छ नज़र आने लगागंगा में गैंगेटिक डॉल्फिन दिखने लगी… 2020 ने हमें इस तथ्य से रूबरू कराया कि हमारे उद्योग देश के विकास की धुरी हैंउद्योगों को तो बंद नहीं किया जा सकतालेकिन औद्योगिक कचरे का सही तरीके से निपटारा जरूर किया जा सकता हैताकि विकास तो हो ही साथ साथ पर्यावरण की भी रक्षा की जा सके

कोरनावायरस के दौर में Work from Home एक ज़रूरत बन गयाशुरूआत में तो ज़्यादातर कंपनियों ने Employees को घर से ही काम करने की आजादी दी.. लेकिन धीरे-धीरे ऑफिस जाकर काम को रफ्तार देने का ट्रेंड अब फिर से वापस रहा है… ऑफिस जाकर काम करने ये ट्रेंड वैक्सीन लगने के बाद और बढ़ेगाउम्मीद है कि कोविड19 का टीका लगने के बाद लोग फिर से दफ्तर लौटेंगे और ज़िंदगी की गाड़ी पटरी भी लौटेगी

एक बात पर कोरोनावायरस संक्रमण ने लगभग सभी को सोचने पर विवश कियाकि असल में हमारी ज़िंदगी में कौन सी चीज ज़्यादा महत्वपूर्ण है… एक सोच जो सबके जेहन में लॉकडाउन के वक्त थी और आज भी है कि जीवन जीने के लिए क्या वाकई में इतनी चीजों की ज़रूरत है जितनी कि हम अपने घरों में इक्टठ्ठा कर लेते हैं... लोग खुद से सवाल करने लगे कि क्या घर के अंदर बेवजह सामान इक्ठ्ठा करना उचित हैअसल में कम समय के लिए ही सही लोग जीवन के सही मूल्यों के बारे में सोचने को मजबूर हुएइस बात में भी दो राय नहीं है कि जीवन का मूल्य अपनों के साथ समय बिताने और अपने अंतर्मन में झांकना ही है… 


  हम सभी जानते हैं कि कोरोनावायरस से डर पूर्णकालिक नहीं हैवैक्सीन लगाने के बाद लोगों का डर काफी हद तक कम होगासवाल है कि कोरोनावायरस के इस दौर से जो सीख मिली है क्या वो आंशिक रहेगीया हम अपनी ज़िंदगी को सही मायने में बेहतर बनाने की सार्थक पहल करेंगे….

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