कच्चे मन की उड़ान

कच्ची काया मन भी कच्चे
उनको लगता अब नहीं हम बच्चे

मन फिरता फुर्र इधर, फुर्र उधर
मैंने कहा ठहरो जरा, सोचो जरा
फिर भरना अपनी उड़ान
ठहरा नहीं, सोचा भी नहीं
शायद सुना भी नहीं
फिर से मारी नई छलांग
भरने को नई उड़ान

आशाओं निराशाओं से दूर
सफलताओं असफलताओं से परे
ये है कच्चे मन की उड़ान

    साभार:दीप्ति

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