व्हीलचेयर से आगे हौसले की उड़ान

'जिस मुकाम पर मैं हूं वो अपनी विकलांगता के कारण नहीं बल्कि अपनी काबिलियत के बल पर हूं'.. जिस महिला के इरादों में ऐसा बुलंद यकीन हो तो आप सोच सकते हैं कि उसे अपनी मंजिल तक पहुंचने से कोई रोक नहीं सकता है. बेंगलुरु की राजलक्ष्मी एसजे एक ऐसी ही ठोस इरादों वाली महिला हैं जिन्होंने दुनिया में भारत का नाम रोशन किया है. 
पोलैंड की राजधानी वारसा में दुनिया में पहली बार मिस व्हीलचेयर प्रतियोगिता का आयोजन हुआ, जिसमें राजलक्ष्मी एसजे ने भारत की तरफ से भाग लिया. राजलक्ष्मी इससे पहले भारत में 2014 में मिस व्हीलचेयर चुनी गई थी. वारसा में हुए मिस व्हीलचेयर क्राउन के लिए भारत के साथ ब्राज़ील, कनाडा. फ्रांस, अमेरिका, मेक्सिको, बेलारुस और रुस जैसे देशों से भी प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया था. हालांकि मिस व्हीलचेयर के खिताब पर बेलारुस की अलेक्सांद्रा चिचिकोवा ने कब्जा जमाया लेकिन राजलक्ष्मी ने भी मिस पॉपुलैरिटी का खिताब हासिल किया. राजलक्ष्मी की कहानी बाकी कहानियों से अलग है क्योंकि राजलक्ष्मी का संघर्ष भी औरों से अलग है. दस पहले 2007 में कभी न हार मानने में यकीन रखने वाली राजलक्ष्मी दुर्घटना का शिकार हो गईं और वो एक व्हीलचेयर पर सिमट कर रह गई. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और तमाम मुश्किलों के बावजूद फिर से उठ खड़ी हुई. 
सफल लोग चाहे किसी भी क्षेत्र में हों, उनमें एक बात कॉमन होती है. वो किसी भी परिस्थिति में हार नहीं मानते हैं. राजलक्ष्मी ने भी अपनी विकलांगता पर विजय पाई है. वो उस सोच से बाहर निकल आई है कि आपका शरीर आपको आगे बढ़ने के रास्ते बंद कर सकता है. ज़रुरत है अपनी उर्जा, अपनी पसंद और पैशन को पहचानना और फिर वो कर दिखाना जो एक मिसाल बन जाए. आज राजलक्ष्मी पेशे से डेंटिस्ट हैं और बेंगलुरु में एसजे फाउंडेशन की चेयरपर्सन भी हैं. एस जे फाउंडेशन विकलांगों (दिव्यांगों) के बेहतरी का काम करती है. 

Popular Posts