एक एकांत ऐसा भी

जब भी बैठ जाती हूं एकांत
छोटी सी बालकनी में
भर लेती हूं पलकों में ये नज़ारा
पत्तों में हवाओं की सरसराहट
बगीचे में बच्चों की खिलखिलाहट
और मीठी धूप की गरमाहट
तब मन मेरा लगाता है एक दौड़
बचपन की यादों की ओर
महसूस करती हूं उमंग भरी उन एहसासों को
छत पर धूम मचाती सहेलियों के संग
उन कदमों की आहट को 
वही बहती हवाओं की सरसराहट को
यही थी हवाएं..यही थी खिलखिलाहट
और थी धूप की यही गरमाहट

हरेक जो पल को जीते हैं हम
गुज़र जाता है दूसरे पल के आते ही
पर बन जाता है एक एहसास
और फिर देता है एकांत में हमारा साथ
  साभार: दीप्ति









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