रिश्तों के धागे
सर्द हवा को सोच
मां का जी घबराता
तब मेरे आगे रख देती
रंगबिरंगी उलझे धागों का एक ढेर
मेरी नन्ही उंगलियां उन्हें सुलझाती
चाहे लग जाती जितनी देर
फिर उन धागों से मां बनाती परिधान
तब यूं हो जाता था सर्द हवा का समाधान
जीवन के हर डोर को सुलझाना नहीं लगता आसान
एक भी गांठ पड़ जाये तो
हो जाती हूं मैं परेशान
देर-सबेर रब दे देता है
जब हर मुश्किल का समाधान
तब रिश्तों के धागों को सुलझाना
क्यूं नहीं बनाता आसान
क्यूं नहीं बनाता आसान