चीन के खिलाफ मोर्चा - मेड इन चाइना Vs मेड इन इंडिया



मेड इन चाइना या फिर मेड इन इंडिया - ये सवाल आज हर किसी की जुबान पर है. दुनिया भर में चीन अपना सामान बेचता है. भारत में भी चीन के सामान हर गली-नुक्कड़ पर बिकते हुए देखे जा सकते हैं. कहा तो ये भी जाता है कि हिंदुस्तान के हर घर में चीन का बना कोई न कोई चीज ज़रूर इस्तेमाल होता है. ऐसे में ये जानना ज़रूरी हो जाता है कि क्या बिना चाइनीज सामानों के हम अपना काम चला सकते हैं औऱ क्या हम भी चीन से एक कदम आगे बढ़कर बेहतर गुणवत्ता वाले लेकिन कम कीमत में सामान बना सकते हैं.

देश में इन दिनों चीन के खिलाफ भावनात्मक विरोध है. चीनी सामानों के बहिष्कार की मांग हो रही है. कोरोनावायरस के फैलाव के लिए चीन पहले से ही अमेरिका और दूसरे कई देशों की आंखों की किरकिरी बना हुआ है. ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और कई यूरोपीय देश चीन पर कोरोनावायरस को लेकर ग़लत जानकारी देने का आरोप लगा रहे हैं और ड्रैगन को शक की नज़र से देख रहे हैं.
 
गलवान वैली में हरकत के बाद से भारत में भी चीन के खिलाफ विरोध मुखर हो रहा है. चीन के प्रॉडक्टस के खिलाफ कई लोग सामने आकर खुलकर बोलने लगे हैंलद्दाख के प्रसिद्ध इंजीनियर सोनम वांगचुक ने यूट्यूब पर लोगों से चीनी सामानों के बहिष्कार करने की अपील भी कर डाली
हालांकि सोनम वांगचुक के यूट्यूब वीडियो अपील को लोगों ने खूब पसंद किया हैकई मीडिया संगठनों ने जहां इसपर न्यूज बनाया तो दूसरी तरफ लोगों ने भी इसे जमकर शेयर किया. लेकिन  देश के अंदर लगातार चीनी समानों के विरोध को लेकर कुछ चीजों के बारे में जानना ज़रुरी हो जाता है.
 
 
 सबसे पहले तो इस बात को समझते हैं कि भारत और चीन के बीच ट्रेड यानी व्यापार कितना हैआपको जानकार हैरानी होगी कि दोनों देशों के बीच व्यापार सन 2000 से 2008 के बीच 3 अरब डॉलर से बढ़कर 51.8 अरब डॉलर हो गया था… 2018 तक भारत और चीन के इस व्यापार में और तेज़ी आई और ये बढ़कर साढ़े 94 अरब डॉलर तक पहुंच गया... 


दूसरी बात भारत और चीन के बीच ये व्यापार किन - किन चीजों को लेकर होता है
जहां चीन भारत में टेलीकॉम उपकरण, बिजली के सामान, मशीनरी, ऑर्गेनिक केमिकल्स, खाद जैसी चीजें बेचता है वहीं भारत चीन को डायमंड और दूसरे प्राकृतिक रत्न, कॉटन और कॉपर मुख्य तौर पर बेचता है. ये सही है कि दोनों देशों के बीच सन् 2000 से अब तक व्यापार कई गुणा बढ़ गया है लेकिन ये सोचने की बात है कि इस व्यापार वृद्धि में किसे फायदा पहुूंचा है - भारत या फिर चीन को.

व्यापार का बढ़ना ये नहीं बताता है कि भारत को फायदा ही पहुंचा हैचीन के साथ व्यापार में चीन का ही पलड़ा भारी है, इसका मतलब व्यापार संतुलन में चीन बाजी मार रहा है. चीन के साथ भारत का व्यापारिक घाटा यानि ट्रेड डिफिसिट करीब 59.1 बिलियन डॉलर है.चीन भारत में खूब सारा सामान बेच रहा है और हम मेड इन चाइना प्रॉडक्ट्स खरीद रहे हैं. दूसरी तरफ भारत की कंपनीज, व्यापारी चीन में ज़्यादा सामान नहीं बेच पा रही है. इससे भारत को व्यापारिक फायदा नहीं पहुंच पा रहा है. आपको मालूम होगा कि दुनिया के कई देशों के साथ भारत के व्यापारिक रिश्ते हैं कहीं हिंदुस्तान को फायदा होता है तो कहीं व्यापारिक घाटा उठाना पड़ता हैलेकिन चीन के साथ व्यापार में होने वाला घाटा दूसरे कई देशों के साथ होने वाले घाटे में सबसे ज़्यादा है


भारत सरकार चाहती है कि चीन के साथ उसका व्यापारिक घाटा कम हो और ये फायदे में बदल जायेलेकिन चीन केवल व्यापारिक मोर्चे पर ही आगे नहीं निकलना चाहता है. वो विस्तारवादी नीतियों के तहत अपनी नज़रें हिंदुस्तान की ज़मीन पर भी गड़ाये हुए है. चीन का झगड़ा केवल भारत के साथ ही नहीं चल रहा हैबल्कि ड्रैगन का विवाद दूसरे देशों के साथ भी है. ड्रैगन पर दुनिया के कई देश इस सिलसिले में आरोप भी लगाते रहे हैं. लेकिन इससे उसे कोई फर्क नहीं पड़ता है... खुद उसके पड़ोसी देश भी चीन के विस्तारवादी नीतियों से त्रस्त हैं

चीन का दूसरे देशों से विवाद
    साउथ चाइना सी में नटूना आईलैंड को लेकर इंडोनेशिया के साथ चीन का विवाद है
    तो पारसेल और स्पार्टी आईलैंड्स को लेकर वियतनाम से चीन का झगड़ा चल रहा है
    साउथ चाइना सी में ही जेम्स शोल पर चीन और मलेशिया में विवाद चल रहा है

ये सोचने वाली बात है कि एक तरफ चीन हमारी सीमाओं पर नापाक हरकत कर रहा है. और दूसरी तरफ बेधड़क हिंदुस्तान के बाज़ार में सस्ती कीमतों पर सामान बेचकर व्यापारिक फायदा भी उठा रहा है. चीनी सामान के बहिष्कार की मांग करना तो ठीक है लेकिन सवाल उठता है कि क्या ऐसा करना सचमुच में संभव है. ये सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि लगभग प्रत्येक प्रॉडक्ट में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप में चीनी सामान का इस्तेमाल हो रहा है..  चाहे आपका फोन हो या फिर पानी पीने का बोतल. होली-दिवाली जैसे भारतीय त्योहारों का ही उदाहरण लीजिये - होली पर बिकने वाली पिचकारी से लेकर गुलाल तक सस्ते दामों पर बाज़ार में उपलब्ध रहती है- दिवाली पर रंग-बिरंगी लाइट्स भी खूब बिकती है. ये वो प्रॉडक्ट्स हैं जो हर आम भारतीयों के घरों में चीनी सामानों की पहुंच को दिखाता है. हो सकता है कि जिस मोबाइल फोन, टैबलेट, लैपटॉप या टीवी पर आप इस रिपोर्ट को देख रहे हों वो भी चीन से आया हो या फिर उसमें भी चीन में बने सामानों को लगाया गया हो. यानी चीनी सामान की पहुंच हर घर में है. अब आप खुद ही आसानी से अंदाजा लगा सकते हैं कि चीनी सामानों के बहिष्कार की असलियत कहां है.

लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि हम चीन का विरोध नहीं कर सकते हैं. ज़रूर कर सकते हैं. लेकिन हम चीनी सैनिकों के हाथों अपने जवानों को मरता हुआ भी नहीं देख सकते हैं. हमें भी अपने स्तर पर पहल करनी होगी. जितना संभव होगा हमें भारतीय सामान, मेड इन इंडिया सामानों को खरीदना होगा. भारतीय कंपनियों को प्रॉयोरिटी देनी होगी. सरकार को भी भारतीय कंपनियों के आगे बढ़ने के लिए ऐसे उपाए करने होंगे जिससे वो कम कीमत में बेहतर क्वालिटी के सामान बना सके. लड़ाई लंबी है, लेकिन मुश्किल नहीं.

Comments

Popular Posts