बाबा के भक्तों... कुछ तो अक्ल लगाओ..

आगजननी हुई, खून बहा और पंचकूला में 25 अगस्त को वो सबकुछ हुआ जो एक दंगाई भीड़ करती है. लेकिन वो दंगाई भीड़ नहीं थी. वो बाबा राम रहीम के लाखों भक्त थे जो केवल अंधभक्ति में यकीन रखते हैं. बाबा ने अगर कुछ कह दिया तो बस उसे आंख मूंद करके मानना है चाहे इसके लिए जान ही क्यों न चली जाए, कानून व्यवस्था को ही ताक पर ही क्यों न रख दिया जाए. पंचकूला में हुई हिंसा ये दिखाती है कि बाबा ने अपने भक्तों के दिमाग को किस कदर बंद करके सम्मोहित जैसा कर दिया कि उनके अंदर से सोचने समझने की शक्ति ही चली गई. हरियाणा, पंजाब समेत दिल्ली, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में बाबा के भक्तों ने जो तांडव किया उसके लिए किसे दोष देना ठीक होगा..बाबा को या फिर अंधभक्तों को? 
हमारे देश के लगभग हर इलाके में बाबा टाइप के पाखंडी अपनी दुकान लगाकर बैठे हैं. वो जानते हैं कि लोग उनके पास अपनी अक्ल ताक पर रखकर आएंगे और उनकी दुकान चल निकलेगी. बाबाओं की कमाई इसलिए भी बंपर हो जाती है क्योंकि शायद लोग तर्क करना भूलते जा रहे हैं या फिर अपनी समस्याओं के लिए हर वक्त किसी शॉर्ट कट की तलाश में लगे रहे हैं. ऐसे ही लोगों का फायदा बेइमान बाबा उठाते रहते हैं. तो लोगों से यही गुजारिश है कि भगवान ने जो थोड़ी बहुत सोचने समझने की शक्ति इंसानों को दी है, उसका इस्तेमाल करो. किसी बाबा के पास जाने से पहले हजार बार खुद से सवाल करो कि किसी के पास किसी की समस्या का कोई हल नहीं होता, हल तो उस इंसान के पास होता है जो उससे जूझ रहा होता है. अगर ज़िंदगी की मंझधार में फंस भी गए तो ऐसे शख्स को ढूंढो जो अनुभवी हो और अच्छी सलाह देने वाला हो. अच्छी सलाह से आधी समस्या तो यूं ही सुलझ जाती है और बाकी तो खुद करना पड़ता है. तो भाइयों, ज़िंदगी में कोई शॉर्ट कट नहीं होता है, बस होती है तो अक्ल जिसपर पर्दा ना ही पड़े तो अच्छा. और अगर पड़ गई तो बाबा लोग कांड करने से और अपना उल्लू सीधा करने से पीछे नहीं हटते. 

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