गौ-तस्करी से उपर.. क्या गायों को मिलेगा सहारा?

देसी गायों की नस्ल
 एकाएक हर तरफ से एक ही आवाज़ सुनाई दे रही है. गायों को बचाओ. गायों को मारा नहीं जाना चाहिये. देश में गाय केवल धार्मिक और श्रद्धा की चीज ही नहीं है बल्कि वो एक भावनात्मक पहलू भी है, जिससे करोड़ों भारतीय जुड़े हैं. तो अब इस बात पर और ध्यान देने की ज़रुरत है कि गौ-संपदा का किस तरह से विकास हो, वृद्धि हो, संवर्धन हो. आखिर क्या किया जाना चाहिये इसके लिए. सीधे-सीधे तौर पर तो जो चीजें समझ में आती है वो है गायों की बेचारी स्थिति. जैसे, आपने खुद ही देखा होगा कि कैसे बड़े शहरों से लेकर छोटे-छोटे कस्बों तक में गायें यूं ही विचरती रहती हैं, कभी बाजार में तो कभी किसी के घरों के सामने खाने की खोज में वो हर तरह का कूड़ा कचरा भी खा लेती है. इसका असर गायों के स्वास्थ्य के साथ-साथ उस दूध के उपर भी पड़ता है जिसका सेवन घरों में किया जाता है.

देसी गायों की 61 नस्लें
संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक, भारत में देसी गायों की करीब 61 प्रजातियां हैं. लेकिन, हैरानी की बात है कि इनमें से 69 प्रतिशत तो बेहद दयनीय अवस्था में हैं. ये बात तो कई अध्ययनों से भी साबित हो चुकी है कि विदेशी गाय की दुधारू प्रजातियों जैसे जर्सी और होल्सटीन के सामने देशी नस्ल की गायें कहीं नहीं ठहरती है. हालांकि अध्ययनों में इस बात पर भी ज़ोर दिया गया है कि कैसे देसी गायों को और उन्नत बनाया जा सकता है. इस दिशा में शहरों और कस्बों में गौशाला का निर्माण और उन्हें बढ़ावा देना एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है. गायों के मालिक सहकारी संगठन बनाकर छोटे स्तर पर इसे करके बड़ी मिसाल पेश कर सकते हैं. किसानों को गोबर से कंपोस्ट खाद आदि बनाकर भी जैविक खेती करने को प्रेरित किया जा सकता है.
गायों की तस्करी
एक बात, जो सबसे पहले सामने आती है वो है, सिर्फ गायें ही नहीं बल्कि और पशुओं के लिए चारागाहों का द्रुत गति से खात्मा. तेजी से होते शहरीकरण, वन कटाव और निर्माण कार्यों ने पशुओं से उनके चरने की जगह छीन ली है. इससे कई तरह की दिक्कतें पैदा हो गईं हैं. अगर सरकार को गौ-संपदा के संरक्षण पर ख्याल है तो उन्हें गंभीरता से इनकी नस्लें सुधारने और रख-रखाव पर ध्यान देना होगा. एक तरफ पुलिस-प्रशासन गौ-तस्करी पर ध्यान दे और दूसरी तरफ, गौरक्षक हंगामा करने के बजाए गायों के विकास पर ध्यान दें तो मुश्किल लगने वाला ये बदलाव आसान हो जायेगा.

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