सूनापन...



बड़े शहरों के कुछ ऐसे चेहरे हैं जो अक्सर आम आंखों से दिखाई नहीं देते.  हालांकि वो आसपास ही होते हैं लेकिन, कम ही होते हैं जिन्हें उस फर्क का एहसास होता है. कम ही होते हैं जो उनके लिए सोच पाते हैं. कम ही होते हैं जो साथ होकर भी साथ होते हैं. बुज़ुर्गों का सूनापन एक ऐसा विषय है जिसपर ध्यान कम ही जाता है. कभी मॉर्निंग वॉक पर, कभी पार्क के किसी कोने में से टकटकी लगाए कुछ नज़रें हलचल ढूंढती ज़रूर दिख जाती है. एक शाम, ऐसी ही दो नज़रें खेलते हुए बच्चों पर टिकी हुई थी. उनके हंसने-खिलखिलाने से चेहरे पर मुस्कुराहट दौड़ जाती थी. उन्हीं के जरिए ही सही, कुछ पुराने दौर की यादें फिर से बुढ़ापे को मुंह चिढ़ाने लगती थी.


P.S: एक आंकड़ा के मुताबिक, भारत में 2016 तक जनसंख्या का 8.6 प्रतिशत बुज़ुर्ग हैं. पिछले एक दशक में बुज़ुर्गों की संख्यां में करीब 35 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की गई. 

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