ऐसे कम होगा दिवाली पर जानलेवा प्रदूषण


दिवाली के गुजर जाने के बाद एक बार फिर से लोगों का जीना दूभर हो गया. पटाखों से निकले धुएं से आसमान में धुंध की एक परत छा गई. सांस लेने में लोगों को दिक्कतें महसूस होने लगी. फेंफड़ों के रोगियों की तो हालत बुरी हो गई. पटाखों से बचने के लिए पालतू जानवर घरों के अंदर बेड के नीचे दुबक गए. अगले साल फिर दिवाली आयेगी..खुशियां लायेगी.. लेकिन इसके साथ ही प्रदूषण का काला धुआं वातावरण में फैल जायेगा. यानि कि साल दर साल ऐसा होता रहेगा. दिवाली के नाम पर लोग बेहिसाब पटाखे जलाते रहेंगे और पर्यावरण का बेड़ा गर्क करते रहेंगे. तो उपाए क्या है. 

दिवाली के एक दिन बाद नोएडा की तस्वीर 
अगर लोग निजी खुशियों से उपर उठकर दिवाली को सामूहिक खुशी के तौर पर मनाने की शुरूआत करें तो संभव है कि एक बीच का रास्ता निकल सके. मान लीजिये, सबने अपने-अपने घरों में पूजा की, फिर एक ऐसी खुली जगह पहुंचे जहां सामूहिक रूप से पटाखों का दिल खोलकर मजा उठाने की व्यवस्था हो. इसके लिए हर मोहल्ले या हाउसिंग सोसायटीज से लोग स्वेच्छा से चंदा दें, इस चंदे से पटाखों को नियंत्रित रूप से जलाने वाली किसी कंपनी को बुलाया जाए. वो ही खुले मैदान या पार्क जैसी जगह पर तरह-तरह के पटाखे जलाने की व्यवस्था करे. ऐसी जगह पर लोगों के परिवार सहित आने और सुरक्षित रूप से आतिशबाजी देखने की समुचित व्यवस्था हो. 
अंदाजा लगाइये कि ऐसा होने पर लोग एक तय समय में घरों से बाहर निकलेंगे और एक समुदाय के तौर पर उत्सव में शामिल होंगे. कोई मां बाप डरा नहीं होगा कि उसके बच्चे कहीं पटाखे जलाते समय खुद को ही न नुकसान पहुंचा ले. एक जगह सबके आने से लोगों का मिलना जुलना भी होगा साथ ही पटाखों पर होने वाला खर्च भी कम हो जायेगा. यानि कि प्रदूषण का स्तर खुद ब खुद कम हो जायेगा.   

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