रियो ओलंपिक: क्या खोया क्या पाया?


रियो ओलंपिक शुरू हुआ और खत्म भी हो गया. एक रजत और एक कांस्य यानि कुल जमा दो पदकों के साथ हम घर वापस आ गए. भारतीय ओलंपिक संघ की शेखी के बावजूद हमारी झोली में दो पदक ही आ पाए, जबकि 12 से 15 पदक आने का दावा रियो जाने से पहले किया जा रहा था. इस बार तो हमने अब तक का सबसे बड़ा खिलाड़ियों का दल भी भेजा था. लेकिन उम्मीदों से विपरीत हम बीझिंग और लंदन ओलंपिक के भी प्रदर्शन को दोहरा नहीं पाए. बीझिंग में 3 और लंदन में भारत ने तमाम कोशिशों के बावजूद 6 पदक हासिल किया था.
खैर, रियो में रेसलिंग में कांस्य जीतने वाली साक्षी और बैडमिंटन में रजत पदक जीतने वाली पी वी सिंधु का पूरे देश में जोर-शोर से स्वागत हो रहा है. पुरस्कारों की झड़ी लगी हुई है. हैदराबाद में गोपीचंद अकादमी में सिंधु, साक्षी, दीपा कर्मकर और बैडमिंटन कोच पी गोपीचंद को एक शानदार समारोह में चमचमाती BMW कार गिफ्ट की गई. सिंधु, साक्षी दीपा और जीतू राय के शानदार प्रदर्शन को देखकर ये आसानी से समझा जा सकता है कि गड़बड़ी खिलाड़ियों में नहीं बल्कि कहीं न कहीं उनके दी जाने वाली सुविधाओं, माहौल, रवैये और मानसिकता में है. 
ओलंपिक में खिलाड़ियों को भेजने का हो हल्ला भारत में तब मचना शुरू होता है जब खेल शुरू होने में साल-डेढ़ साल का ही वक्त रह जाता है. हर बार निराशाजनक प्रदर्शन के बाद खेलों के लिए काफी कुछ कहा जाता है, जिसका नतीजा ओलंपिक में अक्सर चंद पदकों के रूप में ही नज़र आता है. लेकिन, इस बार एक बार फिर उम्मीद जगी है. प्रधानमंत्री मोदी ने रियो ओलंपिक के तुरंत बाद एक कमिटी गठित करने का फैसला किया है ताकि, अगले दो ओलंपिक की तैयारियों के लिए रोड मैप बनाया जा सके.  शायद इस तरह के पहल से खेल और खिलाड़ियों का आने वाले समय में कुछ भला हो जाए और पदकों को लेकर भारत की और फजीहत होने से बच जाए.    

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